बचपन से ही हम सभी ने लाइफ में करियर को लेकर अपने अपने टारगेट सेट किये हुए होते हैं, कोई पायलट बनना चाहता है, कोई इंजीनियर बनना चाहता है, कोई डॉक्टर बनना चाहता है, कोई चार्टर्ड अकाउंटेंट बनना चाहता है, और कोई विदेश में जॉब चाहता है, इनमें से बहुत से अपने उद्देश्य में सफल भी होते है और अपना मुकाम हासिल करते हैं लेकिन क्या कभी आपने यह सोंचा कि इन उद्देश्यों को हासिल करने में किस किस ने हमारी मदद की। वैसे तो इस लिस्ट में बहुत सारे लोगो के नाम होने चाहिए लेकिन मेरे अनुसार जो दो सबसे महत्वपूर्ण शख्सियत हैं वो हैं हमारे माता-पिता।
माता-पिता या आज के मम्मी-डैडी या मॉम-पॉप, ये ईश्वर की बनाई दो ऐसी कृतियाँ हैं जो हमेशा अपने बच्चों को आगे बढ़ते हुए देखना चाहती हैं, ये अपनी छोटी से छोटी ख्वाहिशों को दबा कर हमेशा हमारी बड़ी से बड़ी ख्वाहिशों को पूरा करते हैं, अपना सब कुछ लगा देते हैं हमारी लाइफ और हमारा करियर बनाने में और बदले में भी कुछ नहीं चाहते हैं ।चाहते हैं तो सिर्फ हमारा सुख और जीवन भर का आराम।अपने लिए कुछ भी नहीं और तो और अपने बुढ़ापे के दिनों में भी ये दो महान कृतियाँ हमें हमारे बच्चों को पालने में मदद करती है बिना किसी स्वार्थ के।
ऊपर लिखी बातों से सभी इत्तेफाक रखते होंगे लेकिन मै जो कहना चाहता हूँ वो यह है कि हम आज क्या कर रहे हैं ? ईश्वर की इन दो महान कृतियों के साथ। आये दिन खबरों में आता है कि इस जगह बेटे ने माँ को घर से निकाला, कभी उस शहर में बाप को बेटे ने ओल्ड ऐज होम भेजा, कभी ये पता चलता है कि बेटे और बहू के लिए माँ-बाप बने बोझ, घर से बाहर निकाला, कुछ कपूत ऐसे हैं जो समाज के डर से घर के बाहर तो नहीं निकालते लेकिन घर में ही अपने माता-पिता को नारकीय जीवन जीने पर मजबूर कर देते हैं। आज से कुछ समय पहले तक माता-पिता के बिना परिवार की कल्पना नहीं की जा सकती थी लेकिन आज का शादीशुदा जोड़ा अपने माँ-बाप को अपने साथ रखना तो दूर उन्हें देखना तक पसंद नहीं करता। क्या हो गया है ? आज के बच्चों जिन्हें अपने माँ-बाप बोझ लगते हैं मेरे विचार से आधुनिक बनने की होड़ ने आज की युवा पीढ़ी को भारतीय संस्कारों दूर कर दिया है हम यह भी भूल गए कि दुनिया के तीन चक्कर लगाने के भगवान शंकर के आदेश को गणेश जी ने माँ पार्वती और भगवान भोलेनाथ के तीन चक्कर लगाकर पूरा किया था।
आज हम दूसरे शहर, दूसरे प्रदेश और यहाँ तक कि दूसरे देश जा सकते हैं जॉब के सिलसिले में लेकिन अपने माँ-बाप को समय नहीं दे सकते हैं मेरे विचार से ऐसे जॉब और ऐसी एजुकेशन व्यर्थ है जो हमें हमारे माता-पिता से दूर कर दे क्योंकि माता-पिता से बढ़कर इस संसार में कुछ नहीं। मैं अपने पाठकों से यह भी कहना चाहता हूँ कि हम कितनी भी दौलत कमा ले, कितनी भी ऊंची पोस्ट या ओहदा पा ले और ऐशो आराम के सारे साधन खरीद ले, लेकिन इन खुशियों के बीच अगर हमारे माँ-बाप नहीं हैं तो ये सारी सुख-सुविधाएँ और खुशियाँ व्यर्थ हैं ।और अंत में यही कहना चाहूंगा कि अब समय आ गया है कि हम आधुनिकता की अंधी दौड़ को छोड़ कर वापस अपने भारतीय और सामाजिक मूल्यों की ओर वापस लौटे साथ ही साथ आज का हर बेटा-बहू यह कहे कि “मैं अपने माँ-पापा के साथ रहता हूँ नाकि मेरे माँ-पापा मेरे साथ रहते हैं। सच कहता हूँ कि एक बार अपने माँ-पापा के साथ रहकर तो देखिए इतनी ख़ुशी और प्रसन्नता
कि उसके सामने दुनिया की बड़ी से बड़ी ख़ुशी छोटी महसूस होगी।
डॉ अजय प्रताप सिंह
संपादक,नर्मदा प्रदेश
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